मधुबनी, सदर अस्पताल में सिर्फ 60 बेड की ही मरीजों को सुविधा मिल रही है। इससे अधिक मरीज पहुंचने पर उन्हें अन्य अस्पताल रेफर करना पड़ता है या फिर प्राइवेट नर्सिंग होम में मरीज को भर्ती होने की मजबूरी हो जाती है। इमरजेंसी में भी केवल सात बेड उपलब्ध हैं। 24 घंटे में इमरजेंसी में आने वाले गंभीर मरीज भी जगह नहीं मिलने से परेशानी झेलने को विवश हो जाते हैं।
इससे पूर्व सदर अस्पताल में 100 बेड की सुविधा मरीजों को उपलब्ध कराई जा रही थी मगर कई भवनों के टूट जाने के बाद सौ बेड से केवल 60 बेड की सुविधा ही सदर अस्पताल में रह गई। सदर अस्पताल बीते 2008 में ही 500 बेड में अपग्रेड हो चुका है। डॉक्टर और अन्य पारामेडिकल स्टॉफ की भी भर्ती की गई। पर मरीजों को 500 बेड की जगह के बदले सिर्फ 60 बेड ही उपलब्ध हैं। 13 वर्ष बाद भी जिला अस्पताल की हालत नहीं सुधर सकी। हालांकि, डॉक्टर, जीएनएम व अन्य पारामेडिकल स्टॉफ की भरपूर नियुक्ति की गई है। सिर्फ सदर अस्पताल में ही 114 जीएनएम पदस्थापित हैं। मगर अस्पताल में बेड व अन्य सुविधाएं नहीं रहने से मरीजों व परिजनों को परेशानी होती है।
पुराने भवनों में चल रहे तमाम वार्ड सदर अस्पताल के पुराने भवनों में तमाम वार्ड संचालित हो रहे हैं। अंग्रेज जमाने में बने इन भवनों में अलग-अलग वार्ड संचालित हो रहे हैं। कई विभागों के वार्ड तक बने भी नहीं हैं। अस्पताल प्रशासन की माने तो भवनों के अभाव में मरीजों को सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। इन वार्डों में भी मरीजों को कई बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल रही है। शौचालय के लिए भी मरीजों को भटकने की मजबूरी है। शौचालय की कम संख्या रहने की वजह से मरीज और परिजनों को सुलभ शौचालय का सहारा लेने पड़ता है।
10 वर्षों से अस्पताल में आईसीयू की नहीं मिल रही सेवा
सदर अस्पताल में करीब 10 वर्षों से आईसीयू की सेवा मरीजों को नहीं मिल पा रही है। जानकारी के मुताबिक 2012 में तत्कालीन डीएम लोकेश कुमार सिंह आईसीयू भवन में सेवा की शुरूआत की। महज छह महीने के अंदर से आईसीयू की सेवा बंद हो गई। लाखों की मशीने भी धूल फांकने लगी। समय बीतने के साथ आईसीयू भवन कबारखाना बन गया। लगातार 10 वर्षों से अस्पताल आने वाले क्रिटिकल मरीज बाहर रेफर होते रहे। आइएसओ का दर्जा प्राप्त सदर अस्पताल से आईसीयू के अभाव में गंभीर मरीज लगातार रेफर हो रहे हैं।