अब तक मरीजों को रेफर करते समय चिकित्सक किसी मानक का पालन नहीं करते थे। अस्पतालों में कार्यरत चिकित्सक पुर्जा पर ही रेफर लिखकर मरीज को चलता कर देते थे। इस कारण स्थिति यह हो गई कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मरीजों का उपचार करने के बजाए केवल रेफर करने के लिए ही चर्चित हो गए हैं।
हद तो यह कि जिलास्तर पर बने सदर अस्पतालों में विशेषज्ञ चिकित्सकों के होते हुए भी वहां से मरीजों को मेडिकल कॉलेज में रेफर कर दिया जाता है। जबकि राज्य के सभी मेडिकल कॉलेजों में मरीजों का दबाव पहले से ही है। ऐसे में अस्पतालों की ओर से मरीजों को रेफर किए जाने के कारण उपचार में परेशानी हो रही थी। भारी भीड़ के कारण मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक मरीजों के साथ समुचित न्याय नहीं कर पाते हैं। एक-एक चिकित्सक एक दिन में दर्जनों मरीजों को ओपीडी में देखते हैं। इस स्थिति से उबरने के लिए ही विभाग ने रेफरल पॉलिसी बनाई है। इसमें हर बीमारियों के लिए मानक तय किया गया है। किस बीमारी में किस हद तक मरीजों का उपचार निचली इकाइयों के अस्पतालों में होगा, इसका प्रावधान किया गया है। इसके साथ ही मरीजों को रेफर करने के लिए विभाग ने एक रेफरल कार्ड भी तैयार किया है। इसमें मरीजों से संबंधित पूरी जानकारी और रेफर करने के ठोस कारणों को भी बताना होगा। ऐसा नहीं करने वाले चिकित्सकों पर कार्रवाई की जाएगी।
● सदर अस्पतालों में विशेषज्ञ चिकित्सकों के होते हुए भी मरीजों को किया जाता है रेफर
● बिहार में लागू स्वास्थ्य विभाग की रेफरल पॉलिसी में किया गया इसका प्रावधान
मरीजों के नाम, उम्र व पता की जानकारी देनी होगी
रेफरल कार्ड में मरीजों के नाम, उम्र व पता की जानकारी देनी होगी। मरीजों को कब व किस तिथि को रेफर किया जा रहा है, इसकी जानकारी देनी होगी। जिस मरीज को रेफर किया जा रहा है, उसका उस अस्पताल ने क्या उपचार किया, क्या जांच की, यह भी बताना होगा। मरीज की अपडेट स्थिति की जानकारी कार्ड में देनी होगी, ताकि जिस अस्पताल में मरीज जाए, वहां उसका उपचार जल्दी शुरू हो सके। मरीज को रेफर करने का ठोस कारण चिकित्सकों को बताना होगा। रेफर करने वाले अस्पताल, चिकित्सक, पद के बारे में जानकारी देनी होगी। जिस अस्पताल से रेफर किया गया, उसके प्रभारी को उसकी जानकारी है या नहीं, रेफरल कार्ड में यह भी बताना होगा।